30 सितंबर को सरस्वती विद्या मंडिर में दुर्गाअष्टमी‑महागौरी पूजा, कन्या पूजन और दशहरा समारोह आयोजित, हजारों लोगों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया.
0 टिप्पणिक्या आप जानते हैं कि कन्या पूजन सिर्फ एक रिवाज नहीं, बल्कि जीवन में शुद्धि और सुरक्षा लाता है? कई लोग इसे केवल शरद ऋतु में ही मानते हैं, जबकि सही समय और सही तरीका जानना जरूरी है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कब करना सबसे बेहतर है, कैसे करें पूरी पूजा और इससे मिलने वाले फ़ायदे क्या‑क्या हैं। पढ़ते‑पढ़ते आप खुद को एक भरोसेमंद स्रोत से जोड़ पाएंगे।
कन्या पूजन मुख्यतः शरद ऋतु के एक महीने में किया जाता है, खासकर ज्येष्ठा तिथि या त्रयोदशी तिथि पर। कई कैलेंडर में इसे अष्टमी से द्वादशी तक की अवधि माना जाता है। इस दौरान माँ पृथ्वी की ऊर्जा सबसे ऊँची होती है, इसलिए कन्या (जिन्हें अक्सर बीन या दाल के रूप में पेश किया जाता है) का पूजन करने से घर में समृद्धि आती है। अगर आप शरद ऋतु में नहीं रह रहे हैं, तो आप वसंत ऋतु की शिशिर तिथि में भी इस पूजन को आजमा सकते हैं; वही असर मिलता है।
सबसे पहले साफ‑सुथरा स्थान चुनें, जहाँ आप बैठ सकें। एक छोटी थाली में दो‑तीन किस्म की दाल (चना, मूंग, उरद) रखें और उनपर थोड़ा पानी डालकर कुछ मिनट तक भिगो दें। इससे दाल नरम हो जाएगी और पूजा में सौगंधित रूप से काम आएगी। अब थाली के सामने एक छोटी मूर्ति या चित्र रखें – आम तौर पर माँ शिशिर या धरती की मूरत इस्तेमाल की जाती है।
इसके बाद चावल के दाने, काँच की बोतल (जल के लिए) और कुछ फूल रखें। अब जाप या श्लोक पढ़ें – "ओम् भूर्भुवः स्वः..." या सरल गायत्री मंत्र भी चल सकता है। मंत्र पढ़ते‑लिखते दाल को धीरे‑धीरे हाथ में लेकर कान में लाँघें और कहें, "ये कन्या मेरी समृद्धि की प्रतीक है, इसे स्वीकार करो"। फिर दाल को पानी वाले बर्तन में डालें और धीरे‑धीरे मिट्टी के बर्तन में मिलाएँ।
पूजा के अंत में एक छोटा दीपक जलाएँ और रोलिंग पत्तियों से मुँह को साफ़ करें। यह चरण ऊर्जा को स्थिर करता है और आप अपने घर को शुद्ध रख सकते हैं। अंत में सभी को इस बात की सूचना दें कि पूजा सफल रही, ताकि घर में सकारात्मक वाइब्स बना रहे।
अब कुछ लोगों को लग सकता है कि इस पूजा से क्या फ़ायदा होता है। वास्तव में, नियमित रूप से किया गया कन्या पूजन आपके घर में शांति, सुख‑समृद्धि और स्वास्थ्य को बढ़ाता है। कई परिवारों ने बताया कि इस पूजा के बाद बच्चों की पढ़ाई में सुधार हुआ, व्यापार में लाभ हुआ और स्वास्थ्य समस्याएँ कम़ हुई। यह सिर्फ मान‑विश्वास नहीं, बल्कि मन की शांति से जुड़ी एक शक्ति है।
यदि आप पहली बार कर रहे हैं, तो पाँच‑छह दिनों तक यह रिवाज दोहराएँ। समय के साथ आपको इसके असर का पता चल जाएगा। साथ ही, इस रिवाज में भागीदारी करने वाले सभी लोगों को समान रूप से शुभकामनाएँ दें; इससे सामाजिक बंधन भी मजबूत होते हैं।
अंत में एक छोटा सवाल‑जवाब जोड़ते हैं: क्या दाल के बजाय किसी और वस्तु का उपयोग कर सकते हैं? नहीं, दाल ही सबसे प्राचीन और शुद्ध रूप माना गया है, क्योंकि यह धरती की शक्ति को सीधे दर्शाता है। क्या पूजा के बाद दाल खा सकते हैं? हाँ, लेकिन केवल उसी दिन दो‑तीन चम्मच ही। ऊँचा उपयोग से बचें, ताकि ऊर्जा बिखर न जाए।
कन्या पूजन को रोज़मर्रा की जिंदगी में आसानी से जोड़ना अब कठिन नहीं रहेगा। बस ऊपर बताए गए चरणों को पालन करें और देखें कैसे आपका माहौल बदलता है। अब आप तैयार हैं, तो आज ही इस रिवाज को अपनाएँ और सकारात्मक ऊर्जा को घर में बुलाएँ।
30 सितंबर को सरस्वती विद्या मंडिर में दुर्गाअष्टमी‑महागौरी पूजा, कन्या पूजन और दशहरा समारोह आयोजित, हजारों लोगों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया.
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