30 सितंबर को सरस्वती विद्या मंडिर में दुर्गाअष्टमी‑महागौरी पूजा, कन्या पूजन और दशहरा समारोह आयोजित, हजारों लोगों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया.
0 टिप्पणिजब हम दुर्गाअष्टमी, नवरात्रि के पहले दिन मनाई जाने वाली दुर्गा पूजा की प्रमुख तिथि, शरद दुर्गा अष्टमी की बात करते हैं, तो मुख्य सवाल यही होता है कि ये दिन क्यों खास है? दुर्गाअष्टमी सिर्फ एक कैलेंडर की एंट्री नहीं, बल्कि एक अलग‑अलग रिवाज़, कथा और सामाजिक ऊर्जा का संगम है। यह तिथि दुर्गाअष्टमी को न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक पहचान भी बनाती है।
भारत में दुर्गाशक्तिवाली देवी, मैत्री और साहस की प्रतीक की पूजा अष्टमी से शुरू होती है। अष्टमीनवरात्रि के पहले दिन, जिसे शुर्वेदा कहा जाता है का अर्थ है ‘आठवां दिन’, और यह दिन दुर्गा के सातवें रूप – शैलपुत्री को सम्मानित करता है। शैलपुत्री, जो पहाड़ों की राजकुमारी के रूप में जानी जाती है, इस दिन विशेष पूजा विधि के साथ याद की जाती है। इस प्रकार दुर्गाअष्टमी अष्टमी को समेटे हुए है, और दुर्गा के विभिन्न रूपों को एक साथ लाता है।
दुर्गाअष्टमी पर मुख्य रिवाज़ है नवमीनवरात्रि का नौवां दिन, जहाँ दुर्गा के विरुद्ध विजय का जश्न मनाया जाता है की तैयारी। अष्टमी के बाद घर-घर में ‘कालिका धूप’ जलाकर, शैलपुत्री की अर्चना की जाती है, फिर नौ दिन तक विभिन्न ‘अभिषेक’ और ‘आरती’ चलती रहती है। संगीत में ढोल, तबला और शहनाई का इस्तेमाल होता है, जिससे माहौल में उत्साह और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है। इस दौरान कई गाँव में ‘डक’ गाते हुए झुंड बनता है, जिससे एक सामाजिक जुड़ाव भी बनता है।
भौगोलिक दृष्टि से दुर्गाअष्टमी के उत्सव में विविधता देखी जा सकती है। पूर्वी भारत में, विशेषकर बंगलादेश और पश्चिम बंगाल में, ‘पुजारी’ ‘शालिया’ पहनकर रात्रि तलवारबाज़ी का प्रदर्शन करते हैं। मध्य भारत में, ‘खटिया’ डांस और ‘बजरी’ गीतों के साथ मेलजोल बढ़ता है। उत्तर में ‘गुजिया’ बनाकर प्रसाद में शामिल किया जाता है, जबकि दक्षिण में ‘वरणा’ की प्रक्रिया और ‘अट्टा’ के व्यंजन प्रमुख होते हैं। यह दर्शाता है कि दुर्गाअष्टमी दुर्गा पूजा के साथ कई सांस्कृतिक परतें जोड़ती है, जिससे यह एक राष्ट्रीय महत्व की घटना बन जाती है।
रिवाज़ों के अलावा, दुर्गाअष्टमी का आर्थिक असर भी उल्लेखनीय है। स्थानीय कारीगरों के लिए इस दौरान ‘देवी की मूर्तियों’, ‘झूमर’, ‘बैंडन’ आदि की माँग बढ़ जाती है, जिससे छोटे‑बड़े व्यापार को लाभ मिलता है। साथ ही, सामाजिक संगठनों द्वारा आयोजित ‘शेयर‑मार्केट’, ‘सुरक्षा शिविर’ आदि के जरिए सामुदायिक विकास की दिशा में भी गति आती है। इस प्रकार दुर्गाअष्टमी केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक‑आर्थिक पहलुओं से भी जुड़ी हुई है।
नीचे आप दुर्गाअष्टमी से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर लिखे लेखों की सूची पाएंगे – इतिहास, रीति‑रिवाज, क्षेत्रीय विविधताएँ और आधुनिक समय में इस तिथि का महत्व। इन लेखों को पढ़कर आप न केवल अपने ज्ञान को गहरा करेंगे, बल्कि अपने परिवार और समुदाय में इस पर्व को और भी रंगीन बना सकेंगे। आइए, इस समृद्ध परम्परा की गहराइयों में डुबकी लगाएँ।
30 सितंबर को सरस्वती विद्या मंडिर में दुर्गाअष्टमी‑महागौरी पूजा, कन्या पूजन और दशहरा समारोह आयोजित, हजारों लोगों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया.
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